या मालिक
या मालिक कैसी है तेरी बंदगी,
मिली भी तो एक गरीब की जिंदगी.
कभी यहाँ रोटी नहीं मिलती,
तो कभी लंगोटी नहीं मिलती,
तन्हाई में जीना चाहती जिंदगी,
पर जिंदगी को तन्हाई भी नहीं मिलती.
या मालिक कैसी है तेरी बंदगी.
ख़ुशी कहाँ चली गयी ?
अब ख़ुशी भी नहीं दिखती.
इस गरीब की जिंदगी में
अब कोई आशा भी नहीं दिखती.
क्या यही है जिंदगी ?
या मालिक कैसी है तेरी बंदगी.
मिली भी तो एक गरीब की जिंदगी.
महँगी अब हर चीज हुई,
बेकारी दिन पर दिन बढ़ी,
न जी पति न ये मर पाती,
सांसो में साँस टंगी रहती.
हाय रे हाय ...........
हाय ये जिंदगी .............
मिली भी तो एक गरीब की जिंदगी.
कभी यहाँ रोटी नहीं मिलती,
तो कभी लंगोटी नहीं मिलती,
तन्हाई में जीना चाहती जिंदगी,
पर जिंदगी को तन्हाई भी नहीं मिलती.
या मालिक कैसी है तेरी बंदगी.
ख़ुशी कहाँ चली गयी ?
अब ख़ुशी भी नहीं दिखती.
इस गरीब की जिंदगी में
अब कोई आशा भी नहीं दिखती.
क्या यही है जिंदगी ?
या मालिक कैसी है तेरी बंदगी.
मिली भी तो एक गरीब की जिंदगी.
महँगी अब हर चीज हुई,
बेकारी दिन पर दिन बढ़ी,
न जी पति न ये मर पाती,
सांसो में साँस टंगी रहती.
हाय रे हाय ...........
हाय ये जिंदगी .............
Poem By: JugalMilan